नारी विमर्श >> स्त्री : सत्ता, संस्कृति और समाज स्त्री : सत्ता, संस्कृति और समाजआरती रानी प्रजापति
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समाज को बदलने के लिए कई तरह से लड़ाई लड़ी जा सकती है। जिनमें मुझे तीन प्रकार सबसे अधिक प्रभावित करते हैं। एक, समाज की बुराइयों के लिए प्रत्यक्ष रूप से आन्दोलन किया जाए। हर संभव प्रयास किया जाए कि यह जड़-समाज बदले। एक दूसरी लड़ाई कलम की लड़ाई मानी जाती है, जिसमें तलवार से नहीं कलम से वार करना होता है। सामाजिक परिवर्तन, शासन-सत्ता में भागीदारी से भी हो सकता है। वंचित तबकों को यदि शासन में भागीदारी मिल जाए तो कोई भी परिवर्तन मुश्किल नहीं है। अपने लेखन से मैंने हमेशा दूसरी लड़ाई को लड़ने की कोशिश की है। मैं मानती हूँ कि इस समाज के मध्यम वर्ग को सुधार की सबसे ज्यादा जरुरत है। अपने लेखन से मैंने समाज की चेतना को झकझोरने की कोशिश की है।
प्रस्तुत पुस्तक अलग-अलग समय और विषयों पर लिखे गए मेरे लेखों का संग्रह है। इसमें अधिकतर लेख स्त्री केन्द्रित हैं। स्री के साथ-साथ इस पुस्तक में कुछ अन्य विषयों को भी लिया गया है, पर मूलतः पुस्तक के केंद्र में स्त्री है। स्वानुभूति और सहानुभूति पर आधारित यह लेख स्त्री की समस्याओं से रु-ब-रु करवाने का प्रयास करते हैं। पुस्तक में साहित्य, सिनेमा और समाज में स्त्री की स्थिति को देखने की कोशिश की गयी है। साथ ही वेश्यावृत्ति की समस्या को उठाने का भी प्रयास किया गया है। साहित्य के मध्यकाल को समझे बिना हम आधुनिक काल पर अपनी समझ विकसित नहीं कर पायेंगे। साहित्य के मध्यकाल में स्त्री की दशा को भक्तिकालीन कवि जायसी और रीतिकालीन कवि पद्माकर के माध्यम से समझने का प्रयास किया गया है।
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